श्री सूरदास “एकदम अंधे थे, फिर भी सूरदास द्वारा नित्य रचे और गाये जाने वाले पदों का लेखन और संकलन अवश्य होता रहा होगा। उनके पदों की संख्या ‘सहस्राधिक’ कही जाती है जिनका संग्रहीत रूप ‘सूरसागर’ के नाम से विख्यात है।
महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है।
इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग ‘कृष्ण की बाल-लीला’ और ‘भ्रमर-गीतसार’ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
सूरसागर में 4132 पदों में से 3642 पदों में कृष्ण-लीला का गान है। सूरसागर’ उनकी साहित्यिक निपुणता तथा प्रकृति के सौंदर्य और मानव हृदय की गहराइयों के पर्यवेक्षण का प्रतिफल है।