बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1975 को रांची जिले के उलिहुत गांव में हुआ था। वह ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपने पूरे जीवन आदिवासियों के हित के लिए समर्पित किया था। केवल 25 सालों में बिहार, झारखंड, उड़ीसा में जननायक की पहचान बनाई।आज भी आदिवासी लोग बिरसा मुंडा को अपने भगवान की तरह याद करते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, उन्होंने आदिवासी जनजीवन, अस्मिता तथा अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कड़ा प्रयत्न किया। वे प्रभावी धर्म सुधारक और महान धर्म नायक थे।
आदिवासियों का संघर्ष 18वीं सदी से आज तक चला आ रहा है। 1766 के पहाड़िया विद्रोह से लेकर 1857 के बाद भी आदिवासी अपने हक की लड़ाई लड़ते रहे, 1895 से 1900 तक बिरसा मुंडा का महा विद्रोह “उलगुलान” चला। आदिवासियों को हमेशा से उनके जल, जंगल, जमीन और उनके प्रकृति संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा है और वह हमेशा उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं। 1895 में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गई जमीदारी प्रथा तथा राजस्व व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी थी। बिरसा मुंडा की मृत्यु 9 जून, 1900 को रांची के जेल में हुई। आज भी बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरफ पूजा की जाती है।